ब्रह्मचर्य

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ब्रह्मचर्य का अर्थ

ब्रह्मचर्य का अर्थ है सभी इन्द्रियों पर काबू पाना। ब्रह्मचर्य में दो बातें होती हैं- ध्येय उत्तम होना, इन्द्रियों और मन पर अपना नियंत्रण होना।

 

ब्रह्मचर्य में मूल बात यह है कि मन और इन्द्रियों को उचित दिशा में ले जाना है। ब्रह्मचर्य बड़ा गुण है। वह ऐसा गुण है, जिससे मनुष्य को नित्य मदद मिलती है और जीवन के सब प्रकार के खतरों में सहायता मिलती है।

ब्रह्मचर्य आध्यात्मिक जीवन का आधार है। आज तो आध्यात्मिक जीवन गिर गया है, उसकी स्थापना करनी है। उसमें ब्रह्मचर्य एक बहुत बड़ा विचार है। अगर ठीक ढंग से सोचें तो गृहस्थाश्रम भी ब्रह्मचर्य के लिए ही है। शास्त्रकारों के बताये अनुसार ही अगर वर्तन किया जाय तो गृहस्थाश्रम भी ब्रह्मचर्य की साधना का एक प्रकार हो जाता है।

पृथ्वी को पाप का भार होता है, संख्या का नहीं। संतान पाप से बढ़ सकती है, पुण्य से भी बढ़ सकती है। संतान पाप से घट सकती है, पुण्य से भी घट सकती है। पुण्यमार्ग से संतान बढ़ेगी या संतान घटेगी तो नुकसान नहीं होगा। पापमार्ग से संतान बढ़ेगी तो पृथ्वी पर भार होगा और पापमार्ग से संतान घटेगी तो नुक्सान होगा। यह संतान-निरोध के कृत्रिम उपायों के अवलम्बन से सिर्फ संतान ही नहीं रुकेगी, बुद्धिमत्ता भी रूकेगी। यह जो सर्जनशक्ति (Creative Energy) है, जिसे हम ‘वीर्य’ कहते हैं, मनुष्य उस निर्माणशक्ति का दुरुपयोग करता है। उस शक्ति का दूसरी तरफ जो उपयोग हो सकता था, उसे विषय-उपभोग में लगा दिया। विषय-वासना पर जो अंकुश रहता था, वह नहीं रहा। संतान उत्पन्न न हो, ऐसी व्यवस्था करके पति पत्नी विषय-वासना में व्यस्त रहेंगे, तो उनके दिमाग का कोई संतुलन नहीं रहता। ऐसी हालत में देश तेजोहीन बनेगा। ज्ञानतंतु भी क्षीण होंगे, प्रभा भी कम होगी, तेजस्विता भी कम होगी।

आज मानव समाज में ‘सेक्स’ का ऊधम मचाया जा रहा है। मुझे इसमें युद्ध से भी ज्यादा भय मालूम होता है। अहिंसा को हिंसा का जितना भय है, उससे ज्यादा काम-वासना का है। कमजोरों की जो संतानें पैदा होती हैं, वे भी निर्वीर्य या निकम्मी होती हैं। जानवरों में भी देखा गया है। शेर के बच्चे कम होते हैं, बकरी के ज्यादा। मजबूत जानवरों में विषयवासना कम होती है, कमजोरों में ज्यादा। इसीलिए ऐसा वातावरण निर्माण किया जाय, जो संयम के अनुकूल हो। समाज में पुरुषार्थ बढ़ायें, साहित्य सुधारें और गंदा साहित्य, गंदे सिनेमा रोकें।

ब्रह्मचर्य का रहस्य

एक बार ऋषि दयानंद से किसी ने पूछाः “आपको कामदेव सताता है या नहीं ?”

उन्होंने उत्तर दियाः “हाँ वह आता है, परन्तु उसे मेरे मकान के बाहर ही खड़े रहना पड़ता है क्योंकि वह मुझे कभी खाली ही नहीं पाता।”

ऋषि दयानंद कार्य में इतने व्यस्त रहते थे कि उन्हें सामान्य बातों के लिए फुर्सत ही नहीं थी। यही उनके ब्रह्मचर्य का रहस्य था।

हे युवानों ! अपने जीवन का एक क्षण भी व्यर्थ न गँवाओ। स्वयं को किसी-न-किसी दिव्य सत्प्रवृत्ति में संलग्न रखो। व्यस्त रहने की आदत डालो। खाली दिमाग शैतान का घर। निठल्ले व्यक्ति को ही विकार अधिक सताते हैं। आप अपने विचारों को पवित्र, सात्त्विक व उच्च बनाओ। विचारों की उच्चता बढ़ाकर आप अपनी आंतरिक दशा को परिवर्तित कर सकते हो। उच्च व सात्त्विक विचारों के रहते हुए राजसी व हलके विचारों व कर्मों की दाल नहीं गलेगी। सात्त्विक व पवित्र विचार ही ब्रह्मचर्य का आधार है।

ब्रह्मचर्य की समझ

जब स्वामी विवेकानन्द जी विदेश में थे, तब ब्रह्मचर्य की चर्चा छिड़ने पर उन्होंने कहाः “कुछ दिन पहले एक भारतीय युवक मुझसे मिलने आया था। वह करीब दो वर्ष से अमेरिका में ही रहता है। वह युवक ब्रह्मचर्य का पालन बड़ी चुस्ततापूर्वक करता है। एक बार वह बीमार हो गया तो वहाँ के डॉ. को बताया। तुम जानते हो डॉक्टर ने उस युवक को क्या सलाह दी ? कहाः ‘ब्रह्मचर्य प्रकृति के नियम के विरुद्ध है अतः ब्रह्मचर्य का पालन करना उसके स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं है।’

उस युवक को बचपन से ही ब्रह्मचर्य-पालन के संस्कार मिले थे। डॉक्टर की ऐसी सलाह से वह उलझन में पड़ गया। वह मुझसे मिलने आया एवं सारी बातें बतायीं। मैंने उस युवक को समझायाः ‘तुम जिस देश के वासी हो वह भारत आज भी अध्यात्म के क्षेत्र में विश्वगुरु के पद पर आसीन है। अपने देश के ऋषि-मुनियों के उपदेश पर तुम्हें ज्यादा विश्वास है कि ब्रह्मचर्य को जरा भी न समझने वाले पाश्चात्य जगत के डॉक्टर पर ? हमारे ऋषि-मुनि ब्रह्मचर्य-रक्षा से ही परम पद की यात्रा करने में समर्थ बने हैं। ब्रह्मचर्य को प्रकृति के नियम के विरुद्ध कहने वालों को ब्रह्मचर्य शब्द के अर्थ का भी पता नहीं है। ब्रह्मचर्य के विषय में ऐसे गलत ख्याल रखने वालों के प्रति एक ही प्रश्न है कि ‘आप में और पशुओं में क्या अन्तर है ?’

युवको ! हजारों वर्ष तक तपस्या करके, सात्त्विक आहार करके, गिरि-कंदराओं में साधना करके प्रकृति के सूक्ष्मातिसूक्ष्म रहस्यों की खोज करने वाले हमारे ऋषियों की समझ ठोस है, सत्य की नींव पर आधारित है। उसमें विश्वास रखो, श्रद्धा रखो। देखो, मन को प्रबल बनाना हो तो पहले पवित्रता क्या चीज है ? इसे खूब सूक्ष्मता से समझना होगा। मन को पवित्र विचारों से सराबोर रखने से मनोबल बढ़ता है। मन जितना विकारी विचारों से घिरा रहता है उतना वह निर्बल होता जाता है। इसलिए जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य है। ब्रह्मचर्य विकारी वासनाओं का नाश कर देता है। ब्रह्मचर्य का पालन व्यक्ति को उन्नत विचारों के उत्तुंग शिखरों पर प्रस्थापित कर देता है।

कइयों को ब्रह्मचर्य का पालन कठिन लगता है। उनके लिए मेरी सलाह है कि विकारी विचारों को शुद्ध एवं पवित्र विचारों से काटने के अभ्यास से उसमें बहुत सफलता मिलती है। स्त्री मात्र को माता, पुत्री अथवा बहन के रूप में देखने की आदत बना लेने से कामवासना के विचार शांत हो जाते हैं।

भारतीय संस्कृति में माता, पुत्री एवं बहन के संबंधों को अत्यन्त पवित्र माना जाता है। जब मन में ऐसी पवित्र भावना रखकर स्त्री की तरफ नजर डालोगे तो विकार तुम्हें कभी नही सतायेंगे। ब्रह्मचर्य सभी अवस्थाओं में विद्यार्थी, गृहस्थी अथवा साधु-संन्यासी के लिए अत्यंत आवश्यक है। सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है।”

इस प्रकार स्वामी जी जब अमेरिका के साधकों को ब्रह्मचर्य, सदाचार एवं संयम की महिमा समझा रहे थे, तब पाश्चात्य जगत के डॉक्टरों की समझ कितनी गलत थी – उन्होंने यह भी बता दिया।

संयम की महिमा

“संयमी पुरुष की स्मरणशक्ति, मेधा, आयु, आरोग्यता, पुष्टि, इन्द्रियों की शक्ति, शुक्र, कीर्ति और शक्ति सभी बढ़ी हुई रहती है तथा उसको बुढ़ापा देर से आता है।”

(अष्टांगहृदय सूत्रः 7.71)

“अति यौन क्रिया से मनुष्य को सदा बचना चाहिए वरना शूल, खांसी, बुखार, श्वासरोग, दुबलापन, पीलिया, क्षय, आक्षेपक (ऐंठन) आदि व्याधियाँ ऐसे व्यक्ति को दबोच लेती है।”

(चरक संहिताः 24.11)

“धर्म के अनुकूल, यश देने वाला, आयुवर्धक, दोनों लोकों में रसायन की तरह हितकारी और सर्वथा निर्मल ऐसे ब्रह्मचर्य का तो हम सदैव अनुमोदन करते हैं।”

(अष्टांगहृदयसूत्र उत्तरः 40.4)

“संग, दर्शन और श्रवण का प्रभाव अवश्य पड़ता हैष सावधान !”

“काम-वासना को पूरी तरह से वशीभूत करने की कोशिश करो। ऐसा करने में यदि कोई सफल हो सके तो उसके भीतर मेधा नाम की एक नई सूक्ष्म नाड़ी जागृत होती है। वह अधोगामी शक्ति को ऊर्ध्वगामी बनाती है। इस मेधा नाड़ी के खुलने के बाद सर्वोच्च परमात्मज्ञान प्राप्त होता है।”

(श्री रामकृष्ण परमहंस)

“जिसके मन से कामिनी-कांचन की आसक्ति मिट गई वह तो जिस क्षेत्र में सफल होना चाहे, हो सकता है। और तो क्या ? वह परब्रह्म परमात्मा को भी पा लेता है।”

(पूज्यपाद संत श्री आसारामजी बापू)

“ब्रह्मचर्य वास्तव में एक बहुमूल्य रत्न है। यह एक सर्वाधिक प्रभावशाली औषध है, वास्तव में अमृत है जो रोग, जरा तथा मृत्यु को विनष्ट करता है। शांति, तेज, स्मृति, ज्ञान, स्वास्थ्य तथा आत्म-साक्षात्कार की प्राप्ति के लिए व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए जो परम धर्म है। ब्रह्मचर्य सर्वोत्तम ज्ञान है, सर्वश्रेष्ठ बल है। वह आत्मा वास्तव में ब्रह्मचर्यस्वरूप है और यह ब्रह्मचर्य में ही निवास करती है। मैं प्रथम ब्रह्मचर्य को नमस्कार करके ही असाध्य रोगों का उपचार करता हूँ। ब्रह्मचर्य सभी अशुभ लक्षणों को मिटा सकता है।”

(धन्वंतरि)

“ध्यान के लिए ब्रह्मचर्य-व्रत आवश्यक है। ब्रह्मचारिव्रते स्थितः।”

(गीताः 6.14)

“अच्छी बातें कहना वाणी का ब्रह्मचर्य है। अच्छी बातें सुनना कानों का ब्रह्मचर्य है। अच्छी चीजें देखना आँखों को ब्रह्मचर्य है।”

(श्री उड़िया बाबा)